राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 (National Curriculum Framework 2005) For All Tet Exam
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National Curriculum Framework 2005 |
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 (National Curriculum Framework 2005) For All Tet Exam
संशोधित राष्ट्रीय पाठ्यचर्या दस्तावेज का प्रारंभ प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री नोबेल पुरस्कार विजेता तथा राष्ट्रीय गान के निर्माता रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध "सभ्यता और प्रगति" के एक उद्धरण से होता है।
यह विद्यालय शिक्षा का अब तक का सबसे नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है. इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षाविदों वैज्ञानिकों विषय विशेषज्ञ व अध्यापकों ने मिलकर तैयार किया है मानव विकास संसाधन मंत्रालय की पहल पर इसे बनाया गया है।
सन 2005 में यशपाल समिति की अध्यक्षता में "शिक्षा बिना बोझ के शीर्षक" के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई जिसके आधार पर पाठ्यचर्या का निर्माण किया गया।
पाठ्यचर्या वह रास्ता है जिस पर चलकर छात्र शिक्षा के लक्ष्य पर पहुंचता है पाठ्यचर्या शिक्षक और बालक दोनों को शिक्षा देने एवं ग्रहण करने में मार्गदर्शन का कार्य करता है। पाठ्यचर्या की रचना छात्र को ध्यान में रखकर की जाती है।
Ncf-2005 में प्रोफेसर यशपाल की संचालन समिति ने 21 राष्ट्रीय फोकस समूह का गठन किया।
Ncf-2005 यह कहता है कि बालक की प्राथमिक स्तर की शिक्षा स्थानीय भाषा अर्थात घरेलू भाषा में होनी चाहिए. यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 350 क में दिया गया है।
Ncf-2005 के प्रमुख सुझाव
- शिक्षण सूत्र जैसे ज्ञात से अज्ञात की ओर मूर्त से अमूर्त की ओर आदि का अधिकतम प्रयोग होना चाहिए।
- वह पाठ्यपुस्तक महत्वपूर्ण होती है जो अंतः क्रिया का मौका दें।
- खेल आनंद व सामूहिकता कि भावना के लिए है रिकॉर्ड बनाने को तोड़ने की भावना को श्रेया ना दें।
- सह शैक्षिक गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाना चाहिए।
- कक्षा में शांति का नियम बार-बार ठीक नहीं है अर्थात जीवंत कक्षा गत वातावरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- बच्चों की स्कूली वातावरण को बाहरी वातावरण से जोड़ा जाना चाहिए और बच्चों को तनाव मुक्त वातावरण प्रदान करना चाहिए।
- अभिभावकों को सख्त संदेश दिया जाए कि बच्चों को छोटी उम्र में निपुण बनाने की आकांक्षा रखना गलत है।सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाए
- विशाल पाठ्यक्रम पर मोटी किताब शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक होती है।
- मूल्यों को उपदेश देकर नहीं वातावरण देकर स्थापित किया जाए।
- शिक्षकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार आदि समय पर पहुंच जाएं जाएं।
- बच्चों के अनुभव और स्वयं को प्राथमिकता देते हुए बाल केंद्रित शिक्षा प्रदान की जाए।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम में मनोरंजन के स्थान पर सौंदर्य बोध को प्रेशर दे।
- शिक्षक प्रशिक्षण व विद्यार्थियों की मूल्यांकन को सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाए।
- पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए।
- पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केंद्रित न रह जाए।
- राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार हो।
Ncf-2005 द्वारा दिए गए ज्ञान निर्माण के सिद्धांत
- सीखना एक क्रियाशील और निर्माणात्मक प्रक्रिया है।
- विद्यार्थी ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं।
- कृतियों के माध्यम से ज्ञान का निर्माण होता है।
- ज्ञान के निर्माण से बच्चों का मनोविकास होता है।
- ज्ञान का निर्माण भौतिक जैविक व सामाजिक संदर्भों से जुड़ा हुआ होता है।
प्रमुख शिक्षण विधियां
एक अध्यापक द्वारा अपने शिक्षण को रोचक प्रभावी एवं सरल बनाने के लिए काम ली जाने वाली तकनीकी शिक्षण विधियां कहलाती हैं कक्षा कक्ष में होने वाली अंतः क्रिया है इसमें आती हैं।
शिक्षण विधियां किसी शिक्षक के व्यापार का दर्पण होती हैं यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों की पालना करती है और एक से अधिक विषय हेतु उपयोगी होती है।
ऐडम्स कहते हैं कि शिक्षा दर्शन कब गत्यात्मक साधन है।
शिक्षण विधियां विषय वस्तु के व्यवहारिक संप्रेषण में सहायक होती है।
1. संप्रेषण / बातचीत ( Talking / Communication )
बातचीत के अभाव में किसी भी विधि में शिक्षण करना बहुत ही कठिन कार्य है शिक्षण करने के लिए शिक्षक और छात्र के बीच का अन्तःक्रिया होना जरूरी है.
2. चित्र ( Picturing )
कई शिक्षण विधि ऐसी हैं जिन्हें बिना चित्रों की सहायता से प्रयोग में नहीं लाया जा सकता
3. प्रदर्शन ( Demonstrating )
शिक्षण विधियों की सहायता से यदि कोई क्रियात्मक समस्या हल करनी है तो शिक्षक को प्रदर्शन करना अति आवश्यक है।
4. हाव-भाव ( Gesturing )
कक्षा को व्यवस्थित एवं शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु हावभाव प्रदर्शन आवश्यक है।
5. लेखन ( Writing )
शिक्षा महत्वपूर्ण बिंदुओं को श्यामपट्ट पर लिखकर एवं छात्रों को लिखने का आदेश देकर शिक्षण करते हैं।
6. पठन ( Reading )
छात्रों को शिक्षक के द्वारा पाठ पढ़ने के निर्देश अभिव्यक्ति एवं उच्चारण संशोधन हेतु दिए जाते हैं शिक्षक ही आदर्श वाचन करते हैं।
7. निर्देशन ( Guiding )
क्रियात्मक विधियों से शिक्षण कराते समय शिक्षक निर्देशक की भूमिका में रहता है जो समय समय पर निर्देशन देता रहता है।
शिक्षण विधियों के प्रकार
1. शिक्षक केंद्रित विधियां - शिक्षक केंद्रित विधियों में शिक्षक की भूमिका मुख्य होती है इसमें विद्यार्थी कौन और निष्क्रिय श्रोता के रूप में होता है और शिक्षक सक्रिय रहता है ऐसे विद्यार्थियों को ज्ञानात्मक स्तर का ज्ञान दिया जाता है।
A. व्याख्यान विधि
B.पाठ्यपुस्तक विधि
C.कहानी विधि
D.व्याख्यान व प्रदर्शन विधि
2. बाल केंद्रित विधियां - जोगिया बालक की रुचि क्षमता आयु योग्यता मनोदशा के अनुसार होती हैं उन्हें बाल केंद्रित विद्या कहते हैं इसमें शिक्षक का केंद्र बालक होता है तथा शिक्षक की भूमिका मार्गदर्शक के रुप में होती है।
A.किंडर गार्डन पद्धति - फ्रोबेल
B.मारिया मांटेसरी प्रणाली - मारिया मांटेसरी
C.डाल्टन योजना प्रणाली - मिस हेलन पार्क हर्स्ट
D.बेसिक शिक्षा - महात्मा गांधी
E.डेक्रोली प्रणाली - डेक्रोली
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 एवं भाषा शिक्षण
- भाषा नियमों द्वारा नियंत्रित संप्रेषण का माध्यम भर नहीं है बल्कि यह एक परिघटना है जो एक बड़े स्तर पर हमारी सोच सत्ता और क्षमता के संदर्भ में हमारे सामाजिक संबंधों को निर्मित करती है।
- बच्चों को मातृभाषा में ही शिक्षा प्रदान की जाए और शिक्षकों को कक्षा में बहुभाषी वातावरण का महत्व उपयोग कर सकने की क्षमता प्रदान की जाए।
- प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा या घरेलू भाषा में ही हो और बहुभाषिकता को बढ़ावा दिया जाए।
- बहुभाषिकता ज्यादा संज्ञानात्मक लचीलापन एवं सामाजिक सहिष्णुता को जन्म देती है।
संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार हमारी राजभाषा हिंदी है।
- भाषा शिक्षण का प्रथम उद्देश्य कक्षा में अपनी क्षमता को उच्च स्तर के संवाद व ज्ञान संवेदना द्वारा विकसित करना होना चाहिए।
- कक्षा 3 के बाद मौखिक और लिखित माध्यमों से उच्चस्तरीय संवाद कौशल व आलोचनात्मक चिंतन के विकास का प्रयास होना चाहिए।
- अंग्रेजी वैश्विक भाषा है अतः दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी का शिक्षण होना चाहिए।
- भारत में त्रिभाषा फार्मूला उपयुक्त है जिसमें राजभाषा , मातृभाषा , स्थानीय भाषा तथा अंग्रेजी को पढ़ाया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या और गणित शिक्षण
गणित का शिक्षा में उद्देश्य
- विद्यालय में गणित शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों की सोच का गणितीकरण करना है।
- अमूर्त विचारों के साथ कार्यकर्ताओं समस्या समाधान के उपाय ढूंढना है।
गणित शिक्षण की समस्या
- बच्चों में गणित को लेकर डर बना रहता है। और असफलता का भाव है।
- पाठ्यचर्या जो छोटे से प्रतिभाशाली वर्ग के साथ ही अशभागी बड़े वर्ग दोनों को ही निराश करती है।
- मूल्यांकन की प्रविधियां है जो गणित को घटनाओं की दृष्टि से देखते हैं।
- गणित शिक्षण के लिए शिक्षकों की तैयारी और सहायता का अभाव
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 में गणित की समस्याओं के विशेषण हेतु प्रमुख सुझाव
- गणित शिक्षा का फोकस संघ किन लक्षणों से हटाकर ऊंचे लक्ष्य की तरफ स्थानांतरित करना
- प्रत्येक विद्यार्थी को सफलता के भाव के साथ जोड़ना
- अभ्यार्थी के सामने संकल्पनातमक चुनौतियां प्रदान करना।
- आकलन पद्धतियों को बदलना जिससे विद्यार्थियों के प्रक्रियात्मक ज्ञान के स्थान पर गलती करण योजनाओं की परख हो।
- विविध गणितीय संसाधनों से शिक्षकों का संवर्धन करना।
प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर शिक्षण
- शिक्षण मुख्यता कार्यकलाप आधारित होना चाहिए कक्षा के बाहर और भीतर दोनों जगह पढ़ाया जाना चाहिए लेकिन शिक्षा मुख्यता गतिविधि परक होना चाहिए।
- बच्चों के पर्यावरण से जुड़े अनुभवों को शिक्षा में स्थान देना चाहिए कक्षा 1 व 2 में विषय वस्तु व उससे संबंधित कार्य कलाप के बीच कोई कठोर क्रम नहीं रहना चाहिए ।
- प्राथमिक कक्षा में औपचारिक मूल्यांकन नहीं होना चाहिए शिक्षक को बच्चों का अवलोकन करते हुए ही मूल्यांकन भी करना चाहिए।
- प्राथमिक स्तर तक ग्रेड देने पास या फेल करने की किसी भी तरह की पहल नहीं होनी चाहिए।
- उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चे का पहली बार विज्ञान से परिचय होता है इसलिए यही समय है जब उसे जानना चाहिए कि विज्ञान पढ़ने का क्या मतलब होता है।
- प्राथमिक स्तर के पर्यावरण अध्ययन को विज्ञान और प्रौद्योगिकी दो शाखाओं में बैठ जाना चाहिए।
- उच्च माध्यमिक स्तर पर चुनी गई वैज्ञानिक अवधारणा बच्चों के अनुभव जगत से संबंधित होनी चाहिए।
- सतत व शताब्दी मूल्यांकन होना चाहिए उच्च प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन पूर्ण आंतरिक होना चाहिए बोर्ड परीक्षाएं नहीं होनी चाहिए।
पाठ्यक्रम (Syllabus)
किसी विषय की रूपरेखा को उस विषय का पाठ्यक्रम कहते हैं अर्थात अगले वर्ष शिक्षक की दृष्टि में रखकर बनता है। पाठ्यक्रम छात्र एवं अध्यापक को एक दूसरे से जोड़ने वाली कड़ी का काम करती है।
पाठ्यचर्या (Curriculum)
पाठ्यचर्या अंग्रेजी के Curriculum का हिंदी रूपांतरण है जिसका अर्थ होता है दौड़ का मैदान जिस पर बालक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए दौड़ता है। पाठ्य चल रहा है वहां रास्ता है जिस पर चलकर छात्र शिक्षा के लक्ष्य पर पहुंचता है पाठ्यचर्या शिक्षक और बालक दोनों को शिक्षा देने एवं ग्रहण करने में मार्गदर्शन का कार्य करती है। पाठ्यचर्या की रचना छात्रों को ध्यान में रखकर की जाती है।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 की आवश्यकता
- कक्षा कक्ष शिक्षण को प्रभावशाली बनाने हेतु नवीन पाठ्यक्रम की आवश्यकता पर बल देना।
- विद्यार्थियों की जरूरतों एवं रुचि को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम के निर्माण की आवश्यकता।
- शिक्षण विधियों में सुधार एवं विकास हेतु राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की आवश्यकता का होना।
- भाषा समस्या के निदान हेतु नवीन राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना की आवश्यकता
- पाठ्यक्रम में नवीन तथ्यों एवं शोध कार्यों के निष्कर्षों को शामिल करने हेतु। अभिभावकों को संतुष्टि प्रदान करने के लिए।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 के सिद्धांत
- बालकों की परीक्षा प्रणालियों को लचीलापन से युक्त करना तथा कक्षा गत गतिविधियों से जोड़ना चाहिए।
- बालकों के संपूर्ण ज्ञान को विद्यालय के बाहरी जीवन से जोड़ा जाना चाहिए।
- बालकों की शिक्षण प्रक्रिया लटक पद्धति से मुक्त होनी चाहिए।
- बालकों का चहुमुखी विकास पर आधारित पाठ्यक्रम होना चाहिए।
- बालक में एक ऐसी आदि भाभी पहचान का विकास हो जिसमें प्रजातांत्रिक राज्य व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रीय समस्याएं भी शामिल हो।
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